होलाका
फाल्गुन मास की पूर्णिमा को कहतें हैं । इस दिन इस पर्व को वसन्तोत्सव के
रूप में मनाया जाता है । कुछ स्थानों पर फाल्गुन पूर्णिमा के कुछ दिन पूर्व
ही वसन्त ऋतु की रंगरेलिया प्रारम्भ हो जाती हैं । वस्तुत: वसन्तपंचमी से
ही वसंत के आगमन का संदेश मिल जाता है । होलिकोत्सव को फाल्गु-उत्सव भी
कहतें हैं । यह प्रेम का पर्व है । फाल्गुन पूर्णिमा की रात्रि को होलिका
दहन कर वर्ष की समाप्ति की घोषणा के साथ पारस्परिक वैर-विरोध को समाप्त कर
आगामी वर्ष में प्रेम और पारस्परिक सौहार्द का जीवन व्यतीत करने का संदेश
दिया जाता है । दूसरे दिन अर्थात् नव वर्ष के प्रथम
दिवस (चैत्र प्रतिपदा) को समानता का उद्घोष कर अमीर-गरीब सभी को
प्रेम के रंग (लाल रंग) में रंग दिया जाता है । सड़क पर, गलियों में,
गृह-द्वार पर धनी-निर्धन, जाति-पंक्ति का भेद मिट जाता है । इस प्रकार होली
प्रेम, उल्लास और समानता का पर्व है ।
प्रह्लाद
का अर्थ आनन्द होता है । वैर और उत्पीड़न की प्रतीक
होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक
प्रह्लाद
(आनंद) अक्षुण्ण रहता है ।
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